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मंगलवार, 25 जून 2019

कविता - नीलम सिंह

शब्दों के जोड़-तोड़ से 
गणित की तरह 
हल की जा रही है जो 
वह कविता नहीं है 

अपनी सामर्थ्य से दूना 
बोझ उठाते-उठाते 
चटख गई हैं जिनकी हड्डियाँ 
उन मज़दूरों के 
ज़िस्म का दर्द है कविता 
भूख से लड़ने के लिये 
तवे पर पक रही है जो 
उस रोटी की गंध है कविता 

उतार सकता है जो 
ख़ुदा के चेहरे से भी नकाब 
वो मज़बूत हाथ है कविता 
जीती जा सकती है जिससे 
बड़ी से बड़ी जंग 
वह हथियार है कविता 

जिसके आँचल की छाया में 
पलते हैं हमारी आँखों के 
बेहिसाब सपने 
उस माँ का प्यार है कविता 
जिसके तुतलाते स्वर 
कहना चाहते हैं बहुत कुछ 
उस बच्चे की नई वर्णमाला का 
अक्षर है कविता 

कविता एकलव्य का अँगूठा नहीं है 
कि गुरु-दक्षिणा के बहाने 
कटवा दिया जाय 
वह अर्जुन का गाण्डीव है, कृष्ण का सुदर्शन चक्र ।

कविता नदी की क्षीण रेखा नहीं 
समुद्र का विस्तार है 
जो गुंजित कर सकती है 
पूरे ब्रह्माण्ड को 
वह झंकार है कविता ।

- नीलम सिंह

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