उन्माद कभी ज्यादा देर तक नहीं
ठहरता,
यही है लक्षण उन्माद का ।
बीजों में, पेड़ों में, पत्तों में नहीं होता
उन्माद
आँधी में होता है
पर वह भी ठहरती नहीं
ज्यादा देर तक
जब हम होते हैं उन्माद में
देख नहीं पाते फूलों के रंग
जैसे कि वे हैं ।
उतर जाता उन्माद नदी का भी
पर जो देखता है नदी का उन्माद भी
वह उन्माद में नहीं होता ।
उन्माद सागर का होता है
पर वह भी नहीं रहता
उन्माद में बराबर ।
सूर्य और चन्द्र में तो होता ही
नहीं उन्माद,
होता भी है तो ग्रहण
जो हैं उन्माद में
उन्हें आएँगी ही
नहीं समझ में यह पंक्तियाँ
प्रतीक्षा में रहेगी
कविता यह
उन्माद के उतरने की ।
- प्रयाग शुक्ल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं