तुम हर बार आती हो एकांत में
जैसे पानी में उठती है तरंग
जैसे घोंसले में लौटती है चिड़िया
तुम नदी की धार होकर मुझे गुदगुदाती हो
मैं चित्र होकर डोलने लगता हूँ
अपने ही हृदय में तुम्हारे साथ
बहुत गहरे महसूस करता हूँ तुम्हारी धारा
पेड़ की तरह जड़ों में
जैसे पानी में उठती है तरंग
जैसे घोंसले में लौटती है चिड़िया
तुम नदी की धार होकर मुझे गुदगुदाती हो
मैं चित्र होकर डोलने लगता हूँ
अपने ही हृदय में तुम्हारे साथ
बहुत गहरे महसूस करता हूँ तुम्हारी धारा
पेड़ की तरह जड़ों में
- ध्रुव शुक्ल
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसादर
Bahut hi sunder prasang hai aapka ravindra ji
जवाब देंहटाएं