क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
‘यह अधिकार कहाँ से लाया?’
और न कुछ मैं कहने पाया -
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
वह क्षण अमर हुआ जीवन में,
आज राग जो उठता मन में -
यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
-हरिवंशराय बच्चन
बहुत सुन्दर रचना. ... 👌
जवाब देंहटाएंआभार जी सादर
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"मुखरित मौन में" बच्चन जी की ये रचना संकलित करने के लिए आभार .....सादर
जवाब देंहटाएंआभार जी सादर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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