फ़ॉलोअर

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

'मैं अब विदा होता हूँ' - "पाश"

मैं अब विदा होता हूँ
मेरी दोस्त, मैं अब विदा होता हूँ
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
जिसे तू सारी उम्र पढ़ती रह सके

उस कविता में
महकते हुए धनिये का जिक्र होना था
और सरसों की नाजुक शोख़ी का जिक्र होना था
और जो भी शेष
मैंने तेरे जिस्म में देखा
उस सबकुछ का जिक्र होना था
उस कविता में मेरे हाथो के घट्ठों ने मुस्कुराना था
मेरी जांघो की मछलियों ने तैरना था
और मेरी छाती के बालो के नर्म शाल में से
सेंक की लपटें उठनी थी

उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और जिन्दगी के सारे रिश्तो के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त !
लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक्शे से निपटना
और अगर मैं लिख भी लेता
वो शगनो भरी कविता
तो उसने यूँ ही दम तोड़ देना था
मुझे और तुझे छाती पर बिलखते छोड़ कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही शक्तिहीन हो गयी है
जबकि हथियारों के नाख़ून बूरी तरह बढ़ आये है
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों से युद्ध करना बहुत जरुरी हो गया है

युद्ध में
हर चीज को बड़ी आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह..
और इस हालत में
मेरे चुम्बन के लिए बढ़े हुए होठों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा
या तेरी कमर की लहरन को
सागर के सांस लेने की तुलना देना
बहुत हास्यास्पद-सा लगना था
सो मैंने ऐसा कुछ नही किया
तुझे,
तेरी मेरी आंगन में बच्चे खिला सकने की ख्वाहिश को
और युद्ध की समुचता को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए सम्भव नही हुआ
और मैं अब विदा होता हूँ

मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्ठी की भाँती तपने वाले
अपने गाँव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते है
और चांदनी में रस भरे टोक के ढेरो पर लेटकर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हाँ, यह हमे याद रखना पड़ेंगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नही होता
याद करना बहुत ही सुखदाई लगता है.

मैं इस विदाई की घड़ी धन्यवाद करना चाहता हूँ
उन सब हसीन चीजों का
जो हमारी मुलाकातों पर तम्बू की तरह तनती रही
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने पर हसीन हो गयी,
मैं धन्यवाद करता हूँ
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी पवन का
जो मेरा दिल लगाये रखती रही इन्तजार करते
आढ़ पर उगे हुए रेशमी घास का
जो तेरी रुमकती हुई चाल के आगे सदा बिछ बिछ गया
टिंडो में से झड़ी कपास का
जिन्होंने कभी कोई एतराज़ न किया
और सदा मुस्कुराकर हमारे लिए सेज बन गयी
ईख पर तैनात पिद्दियो का
जिन्होंने आने-जाने वाले की खबर रखी
जवान गेहूं का
जो हमे बैठे ना सही, लेटे हुए ढंकता रहा.
मैं धन्यवाद करता हूँ सरसों के छोटे-छोटे फूलों का
जिन्होंने मुझे कई बार बख्शा अवसर
पराग-केसर तेरे बालो में से झाड़ने का.
मैं मनुष्य हूँ, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूँ
और उन सब चीजो के लिए
जिन्होंने मुझको बिखर जाने से बचाये रखा
मेरे पास बहुत शुक्राना है
मैं धन्यवाद करना चाहता हूँ.

प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को सहते हुए
अपनेआप को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी हुई गोली का
किसी झोपडी में पड़े रहकर
जख्म भरनेवाले दिन की कोई कल्पना करे
प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है.
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
जीने का यही सलीका होता है.

प्यार करना और जीना उन्हें कभी नही आयेंगा
जिन्हें जिन्दगी ने बनिया बना दिया.

जिस्मो का रिश्ता समझ सकना -
ख़ुशी और नफरत में कभी लीक ना खीचना
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फ़िदा होना
बहुत सुरमगति का काम होता है मेरी दोस्त
मैं अब विदा होता हूँ.

तू भूल जाना
मैंने किस तरह पलकों में पालकर जवान किया
कि मेरी नजरो ने क्या कुछ नही किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में,
कि मेरे चुम्बनों ने कितना खुबसुरत कर दिया तेरा चेहरा
कि मेरे आलिंगनो ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे सांचे में ढाला
तू यह सभी कुछ भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके
कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना मेरी दोस्त,
मेरे हिस्से का जी लेना.
- "पाश"
"पाश"


2 टिप्‍पणियां: