यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली.
शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली .
दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली .
उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली .
सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की.
जीवित ज्योति नष्ट नयनों की, सच्ची लगन मनस्वी की.
बीते हुए बालपन की यह, क्रीड़ापूर्ण वाटिका है .
वही मचलना, वही किलकना,हँसती हुई नाटिका है .
मेरा मंदिर,मेरी मसजिद, काबा काशी यह मेरी .
पूजा पाठ,ध्यान,जप,तप,है घट-घट वासी यह मेरी.
कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को अपने आंगन में देखो .
कौशल्या के मातृ-मोद को, अपने ही मन में देखो.
प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास.
जीव-दया जिनवर गौतम की,आओ देखो इसके पास .
परिचय पूछ रहे हो मुझसे, कैसे परिचय दूँ इसका .
वही जान सकता है इसको, माता का दिल है जिसका .
-- सुभद्राकुमारी चौहान
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-06-2019) को “प्रीत का व्याकरण” तथा “टूटते अनुबन्ध” का विमोचन" (चर्चा अंक- 3356) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मातृत्व और वात्सल्य की अनुठी कृति महादेवी जी की कालजयी रचना।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अनुपम।