कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना
धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना
दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वे राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना
लो विसर्जन आज वासंती छुअन का
साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना
धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना
दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वे राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना
लो विसर्जन आज वासंती छुअन का
साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना
- किशन सरोज
चित्र - रवीन्द्र भारद्वाज
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 02 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलो विसर्जन आज वासंती छुअन का
जवाब देंहटाएंसाथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना
वाह! रविन्द्र जी बहुत बहुत आभार सरोज जी की इतनी भावपूर्ण रचना पढवाने के लिए | अनूठे भाव पिरोये हैं रचना में |
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 28 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1322 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
वाह बहुत सुन्दर रचना अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें
जवाब देंहटाएंमैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वे राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना
बहुत लाजवाब....
वाह!!!