नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था
पकी सुनहली फसलों से जो
अबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था
पकी सुनहली फसलों से जो
अबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है
- नागार्जुन
चित्र - गूगल से साभार
बाबा की एक अनुपम कृति के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंनागार्जुन की कृति...., अत्यन्त सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन की कलम नहीं तलवार रही है।
जवाब देंहटाएंपकी सुनहली फसलों से जो
जवाब देंहटाएंअबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूंदें इसमें मुसकाती हैं ।
अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट रचना बाबा नागार्जुन जी को नमन।
उत्कृष्ट सृजन पढवाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद...
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