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मंगलवार, 12 मार्च 2019

कोई हँस रहा है कोई रो रहा है - अकबर इलाहाबादी

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कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है

कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है

कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है

इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
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- अकबर इलाहाबादी

चित्र - गूगल से साभार 


9 टिप्‍पणियां:

  1. अजीब भूलभुलैया है ये जिंदगी ।
    उम्दा बेहतरीन ।

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  2. कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
    कोई बीज उम्मीद के बो रहा है
    बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. कहीं नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
    कोई बीज उम्मीद के बो रहा है

    सफ़र बदस्तूर चल रहा है ! वाह !

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल ...., जिन्दगी का फलसफा बयान करता सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 16 मार्च 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "मुखरित मौन में" इस रचना को संकलित करने के लिए आभार .....सादर

      हटाएं