गूगल से साभार |
प्रसंग: - कृष्ण मथुरा जा चुके हैं | बहुत दिन बीत गए हैं | अचानक एक दिन राधा को प्रेम की तेज़ हूक उठती है और वह अपनी सखियों से कहती है... ।
श्याम रंग में रंगे बरसने लगे जो मेघ,
रिमझिम बाँसुरी की तान लगने लगी ।
वायु में भी कृष्ण की हँसी सुनाई दे रही है,
सृष्टि साँवरे का परिधान लगने लगी ।
कल रात मोहन जो सपने में आया सखी !
जीवन से कोई पहचान लगने लगी ।
जाने किस आसन पे मुझको बिठा दिया कि
धरती ये धूरि के समान लगने लगी ।।१।।
रागिनी थिरक उठी आज मेरे अधरों पे,
जैसे बही मलय-बयार मरुथल से ।
अंग-अंग में सखी री ! दामिनी मचल उठी,
खिल गए व्याकुल नयन भी कमल से ।
जिस पल साँवरे ने निंदिया चुरा ली मेरी,
भावना को चैन नहीं आए उस पल से ।
बाँध गया मन को कि मोह नहीं टूटता है,
छलिया ने बाँसुरी बजाई बड़े छल से ।।२।।
रोम-रोम दोहरा रहा है श्याम-श्याम आज,
बन में पपीहा जैसे बोलता पिया-पिया ।
सारा खेद, सारी पीर, अँखियों का सारा नीर,
मोहन कि एक मुस्कान में भुला दिया ।
नेह का ये तीर कब भावना के पार हुआ,
आज तक इसको समझ न सका हिया ।
माखन चुराने वाले जसुदा के लाडले ने,
जाने किस पल मेरे मन को चुरा लिया ।।३।।
अँखियों में साँवरा है, बतियों में साँवरा है,
सारी भूमि श्याम का निवास लगने लगी ।
किन्तु बोलते ही बोलते जो रोई राधा रानी,
पावस में जैसे मधुमास लगने लगी ।
सोचती हैं गोपियाँ कि हर्ष के प्रसंग बीच,
राधिका क्यों इतनी उदास लगने लगी ।
प्रेम की पिपासिता का मन कैसे तृप्त होगा !
देख नदिया को फिर प्यास लगने लगी ।।४।।
-आशुतोष द्विवेदी
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 27 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1259 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी सहृदय आभार.. "पाँच लिंकों का आनंद" में
जवाब देंहटाएं'प्रेम की हूक' (घनाक्षरी छंद) -आशुतोष द्विवेदी जी की रचना सम्मिलित करने लिए
वाह बहुत ही सुंदर और उत्कृष्ट भक्ति रस से सराबोर सांवरे को समर्पित रचना।
जवाब देंहटाएंजी सहृदय आभार...आपकी सुंदर टिप्पणी के लिए
हटाएंप्रेम और विरह की मार्मिक अविव्यक्ति........ सादर नमन
जवाब देंहटाएंसो तो है...
हटाएंबहुत-बहुत आभार...आपकी प्रतिक्रिया के लिए
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआभार जी.....सादर
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया के लिए
वाहहह लाज़वाब साहित्यिक संकलन...अप्रतिम,आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार इस सुंदर को पढ़वाने के लिए।
सादर।
बहुत-बहुत आभार ..जी आपकी अति सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएं"प्रेम की पिपासिता का मन कैसे तृप्त होगा !
देख नदिया को फिर प्यास लगने लगी "
अद्भुत अनुभूति!!!
जी आभार..अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए..सादर
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजी आभार सहृदय ...आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
हटाएंThank you so much ji ...for your beautiful comment
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर 👌
जवाब देंहटाएंजी सहृदय आभार....आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
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