सूने घर में
कोने-कोने
मकड़ी बुनती जाल
अम्मा बिन
आँगन सूना है
बाबा बिन दालान
चिट्ठी आई है
बहिना की
साँसत में है जान,
नित-नित
नए तगादे भेजे
बहिना की ससुराल ।
भइया तो
परदेश विराजे
कौन करे अब चेत
साहू के खाते में
बंधक है
बीघा भर खेत,
शायद
कुर्की ज़ब्ती भी
हो जाए अगले साल ।
ओर छोर
छप्पर का टपके
उनके काली रात
शायद अबकी
झेल न पाए
भादों की बरसात
पुरखों की
यह एक निशानी
किसे सुनाए हाल ।
फिर भी
एक दिया जलता है
जब साँझी के नाम
लगता
कोई पथ जोहे
खिड़की के पल्ले थाम,
बड़ी-बड़ी दो आँखें
पूछें
फिर-फिर वही सवाल ।
सूने घर में
कोने-कोने
मकड़ी बुनती जाल ।
- सत्यनारायण
दिन चला अवसान को अब
जवाब देंहटाएंघंटियाँ मन्दिर बजी है
दीप जलते देहरी पर
आरती थाली सजी है....
आपकी रचना में गाँव के मिट्टी की भीनी सी खुशबू है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय रवीन्द्र भारद्वाज जी।।।।।
वाह, दिल को छू लेनी वाली रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन |
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