दूर दूर तक
सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ
अचानक टीले करवट बदलने लगे
जैसे नींद में उठ चलने लगे।
एक अदृश्य विराट हाथ बादलों-सा बढ़ा
पत्थरों को निचोड़ने लगा
निर्झर फूट पड़े
फिर घूम कर सबकुछ रेगिस्तान में बदल गया
शांत धरती से
अचानक आकाश चूमते
धूल भरे बवंडर उठे
फिर रंगीन किरणों में बदल
धरती पर बरस कर शांत हो गए।
तभी किसी
बांस के वन में आग लग गई
पीली लपटें उठने लगीं
फिर धीरे-धीरे हरी होकर
पत्तियों से लिपट गईं।
पूरा वन असंख्य बाँसुरियों में बज उठा
पत्तियाँ नाच-नाच कर
पेड़ों से अलग हो
हरे तोते बन उड़ गईं।
लेकिन भीतर कहीं बहुत गहरे
शाखों में फँसा
बेचैन छटपटाता रहा
एक बारहसिंहा
सारा जंगल काँपता हिलता रहा
लो वह मुक्त हो
चौकड़ी भरता
शून्य में विलीन हो गया
जो धमनियों से
अनंत तक फैला हुआ है।
सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ
अचानक टीले करवट बदलने लगे
जैसे नींद में उठ चलने लगे।
एक अदृश्य विराट हाथ बादलों-सा बढ़ा
पत्थरों को निचोड़ने लगा
निर्झर फूट पड़े
फिर घूम कर सबकुछ रेगिस्तान में बदल गया
शांत धरती से
अचानक आकाश चूमते
धूल भरे बवंडर उठे
फिर रंगीन किरणों में बदल
धरती पर बरस कर शांत हो गए।
तभी किसी
बांस के वन में आग लग गई
पीली लपटें उठने लगीं
फिर धीरे-धीरे हरी होकर
पत्तियों से लिपट गईं।
पूरा वन असंख्य बाँसुरियों में बज उठा
पत्तियाँ नाच-नाच कर
पेड़ों से अलग हो
हरे तोते बन उड़ गईं।
लेकिन भीतर कहीं बहुत गहरे
शाखों में फँसा
बेचैन छटपटाता रहा
एक बारहसिंहा
सारा जंगल काँपता हिलता रहा
लो वह मुक्त हो
चौकड़ी भरता
शून्य में विलीन हो गया
जो धमनियों से
अनंत तक फैला हुआ है।
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-05-2019) को "संस्कारों का गहना" (चर्चा अंक-3322) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर