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सोमवार, 15 अप्रैल 2019

औकात - नरेश सक्सेना

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वे पत्थरों को पहनाते हैं लंगोट
पौधों को 
चुनरी और घाघरा पहनाते हैं

वनों, पर्वतों और आकाश की 
नग्नता से होकर आक्रांत
तरह-तरह से 
अपनी अश्लीलता का उत्सव मनाते हैं

देवी-देवताओं को 
पहनाते हैं आभूषण
और फिर उनके मन्दिरों का
उद्धार करके 
उन्हें वातानुकूलित करवाते हैं

इस तरह वे 
ईश्वर को 
उसकी औकात बताते हैं ।
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- नरेश सक्सेना


3 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान को जिन शैतानों ने अपना बंधक बना रखा है, उनके सामने भगवान की वैसे भी क्या औक़ात हो सकती है?

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं