इच्छाओं का घर--- कहाँ है?
क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना?
इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर.
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?
पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?
क्या इच्छाएं मार डालूँ?
या फिर उन पर काबू पा लूं?
और यदि हाँ तो भी क्यों?
जब प्रभु की कृपा से हैं मन में समाईं?
तो फिर क्या है उनमें बुराई?
क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना?
इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर.
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जनमों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?
पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?
क्या इच्छाएं मार डालूँ?
या फिर उन पर काबू पा लूं?
और यदि हाँ तो भी क्यों?
जब प्रभु की कृपा से हैं मन में समाईं?
तो फिर क्या है उनमें बुराई?
- अंजना भट्ट
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 06 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया सादर
हटाएंइस रचना को "मौन मुखरित में" सम्मिलित करने के लिए
वाहह्हह।.बहुत खूब👍👌
जवाब देंहटाएंजब सान्स्सें चलती हैं तो इच्छाओं का जमघट लगता है ...
जवाब देंहटाएंते प्रेरित करती हैं जीवन को ...