नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं,
हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों,
तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ
योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर,
जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ
गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे कंठ मेरी वेदनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या?
दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है,
राम से सीता अलग हैं,कृष्ण से राधा अलग हैं,
नियति का हर न्याय सच्चा, हर कलेवर में कला है,
वासना के प्रेत पागल हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हरे माथ मेरी वर्जनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
चल रहे हैं हम पता क्या कब कहाँ कैसे मिलेंगे?
मार्ग का हर पग हमारी वास्तविकता बोलता है,
गति-नियति दोनों पता हैं उस दीवाने के हृदय को,
जो नयन में नीर लेकर पीर गाता डोलता है,
मानसी-मृग मरूथलों में खो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी योजनायें हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं!
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
शक्ति के संकल्प बोझिल हो गये होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे चरण मेरी कामनायें हैं,
हर तरफ है भीड़ ध्वनियाँ और चेहरे हैं अनेकों,
तुम अकेले भी नहीं हो, मैं अकेला भी नहीं हूँ
योजनों चल कर सहस्रों मार्ग आतंकित किये पर,
जिस जगह बिछुड़े अभी तक, तुम वहीं हों मैं वहीं हूँ
गीत के स्वर-नाद थक कर सो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे कंठ मेरी वेदनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या?
दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है,
राम से सीता अलग हैं,कृष्ण से राधा अलग हैं,
नियति का हर न्याय सच्चा, हर कलेवर में कला है,
वासना के प्रेत पागल हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हरे माथ मेरी वर्जनाएँ हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं,
चल रहे हैं हम पता क्या कब कहाँ कैसे मिलेंगे?
मार्ग का हर पग हमारी वास्तविकता बोलता है,
गति-नियति दोनों पता हैं उस दीवाने के हृदय को,
जो नयन में नीर लेकर पीर गाता डोलता है,
मानसी-मृग मरूथलों में खो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी योजनायें हैं,
नेह के सन्दर्भ बौने हो गए होंगे मगर,
फिर भी तुम्हारे साथ मेरी भावनायें हैं!
- कुमार विश्वास
चित्र - गूगल से साभार
बहुत सार्थक रचना।
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