तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
मैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तू तो इतना बड़ा नहीं होता
चाँद मिलता न राह में उस रोज
इश्क़ का हादसा नहीं होता
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फ़ासला यूं बढ़ा नहीं होता
छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता
-गौतम राजरिशी
बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंसादर..
जी आभार....... सादर
हटाएंआपकी बहुमुल्य प्रतिक्रिया के लिए
वाह!!!
जवाब देंहटाएंजी आभार..... आदरणीय सादर
हटाएंतू जो मुझसे जुदा नहीं होता
जवाब देंहटाएंमैं ख़ुदा से खफ़ा नहीं होता...क्या खूब लिखा है। 👌👌👌
जी आभार...... सादर
हटाएंअपनी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंको के आनन्द में" यह रचना संकलित करने के लिए आभार.....जी सादर
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
आभार....... जी सादर
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