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मंगलवार, 8 जनवरी 2019

तुम मुझे मिलीं -पंकज चतुर्वेदी

गूगल से साभार 

तमाम निराशा के बीच
तुम मुझे मिलीं 
सुखद अचरज की तरह 
मुस्कान में ठिठक गए 
आंसू की तरह 

शहर में जब प्रेम का अकाल पड़ा था 
और भाषा में रह नहीं गया था 
उत्साह का जल 

तुम मुझे मिलीं 
ओस में भीगी हुई 
दूब की तरह 
दूब में मंगल की 
सूचना की तरह 

इतनी धूप थी कि पेड़ों की छांह 
अप्रासंगिक बनाती हुई 
इतनी चौंध 
कि स्वप्न के वितान को 
छितराती हुई 

तुम मुझे मिलीं 
थकान में उतरती हुई 
नींद की तरह 
नींद में अपने प्राणों के 
स्पर्श की तरह 

जब समय को था संशय 
इतिहास में उसे कहां होना है 
तुमको यह अनिश्चय 
तुम्हें क्या खोना है 
तब मैं तुम्हें खोजता था 
असमंजस की संध्या में नहीं 
निर्विकल्प उषा की लालिमा में 

तुम मुझे मिलीं 
निस्संग रास्ते में 
मित्र की तरह 
मित्रता की सरहद पर 
प्रेम की तरह
-पंकज चतुर्वेदी

9 टिप्‍पणियां:

  1. "मुखरित मौन में" 'तुम मुझे मिलीं' -पंकज चतुर्वेदी जी की रचना साझा करने के लिए ....सादर आभार जी

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