प्रेम की सच्चाई की बोलियां ही गायब हैं
आदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं
साबजी पधारे थे सैर को गुलिस्तां की
तब से इस चमन की सब तितलियां ही गायब हैं
हाथ क्या मिलाया था दिल ही दे दिया था उन्हें
हाथ अपने देखे तो उंगलियां ही गायब हैं
यूं ही गर्भ पे जो चली आपकी ये मनमानी
कल जहां से देखोगे ल़डकियां ही गायब हैं
वे भले प़डोसी थे, आए थे नहाने को
बाथरूम की तब से टौंटियां ही गायब हैं
चीर को हरण कैसे अब करोगे दुशासन
जींस में हैं पांचाली, सा़डयां ही गायब हैं
होटलों में खाते हैं वे चिकिनओबिरयानी
और कितने हाथों से रोटियां ही गायब हैं।
आदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं
साबजी पधारे थे सैर को गुलिस्तां की
तब से इस चमन की सब तितलियां ही गायब हैं
हाथ क्या मिलाया था दिल ही दे दिया था उन्हें
हाथ अपने देखे तो उंगलियां ही गायब हैं
यूं ही गर्भ पे जो चली आपकी ये मनमानी
कल जहां से देखोगे ल़डकियां ही गायब हैं
वे भले प़डोसी थे, आए थे नहाने को
बाथरूम की तब से टौंटियां ही गायब हैं
चीर को हरण कैसे अब करोगे दुशासन
जींस में हैं पांचाली, सा़डयां ही गायब हैं
होटलों में खाते हैं वे चिकिनओबिरयानी
और कितने हाथों से रोटियां ही गायब हैं।
-अशोक अंजुम
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी सह्दय आभार ....."पाँच लिंको का आनंद में" यह रचना संकलित करने के लिए
हटाएंवाह ... क्या बात है ...
जवाब देंहटाएंअलग अंदाज़ के चुटीले, सटीक और शुभ्ते हुए शेर ...
बधाई ...
सह्दय आभार.... आपकी बहुमुल्य प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर...
बहुत खूब।
जी सादर आभार.....
हटाएंवाह हर शेर शोर मचाता सा।
जवाब देंहटाएंउम्दा ।
जी आपका बहुत-बहुत आभार........
हटाएंप्रतिक्रिया देने के लिए