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शनिवार, 26 जनवरी 2019

प्रेम की, सचाई की, बोलियाँ ही गायब हैं -अशोक अंजुम

प्रेम की सच्चाई की बोलियां ही गायब हैं
आदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं

साबजी पधारे थे सैर को गुलिस्तां की
तब से इस चमन की सब तितलियां ही गायब हैं

हाथ क्या मिलाया था दिल ही दे दिया था उन्हें
हाथ अपने देखे तो उंगलियां ही गायब हैं

यूं ही गर्भ पे जो चली आपकी ये मनमानी
कल जहां से देखोगे ल़डकियां ही गायब हैं

वे भले प़डोसी थे, आए थे नहाने को
बाथरूम की तब से टौंटियां ही गायब हैं

चीर को हरण कैसे अब करोगे दुशासन
जींस में हैं पांचाली, सा़डयां ही गायब हैं

होटलों में खाते हैं वे चिकिनओबिरयानी
और कितने हाथों से रोटियां ही गायब हैं।
-अशोक अंजुम

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. जी सह्दय आभार ....."पाँच लिंको का आनंद में" यह रचना संकलित करने के लिए

      हटाएं
  2. वाह ... क्या बात है ...
    अलग अंदाज़ के चुटीले, सटीक और शुभ्ते हुए शेर ...
    बधाई ...

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    उत्तर
    1. सह्दय आभार.... आपकी बहुमुल्य प्रतिक्रिया के लिए।

      हटाएं
  3. वाह!!!
    लाजवाब शेर...
    बहुत खूब।

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  4. वाह हर शेर शोर मचाता सा।
    उम्दा ।

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    उत्तर
    1. जी आपका बहुत-बहुत आभार........
      प्रतिक्रिया देने के लिए

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