गूगल से साभार |
अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये ..
इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये ..
इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..
-दुष्यंत कुमार
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी सादर आभार .......
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 22 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द में" 'फिर कर लेने दो प्यार प्रिये' -दुष्यंत कुमार जी की रचना सम्मिलित करने के लिए आभार......सादर
हटाएंदुष्यंत कुमार जी की लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंआभार .....आदरणीय सादर
हटाएंइच्छाएँ मुझको लूट चुकी
जवाब देंहटाएंआशाएं मुझसे छूट चुकी
बेहतरीन रचना से अवगत करवाने के लिए धन्यवाद.
स्वागत है ठीक हो न जाएँ
बहुत-बहुत आभार .......आदरणीय अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए
हटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जी आभार ........सादर
हटाएंलेखन के शिखरों की किन शब्दों में सराहना की जाए -- आखिर सूर्य को दीपक दिखाना कहाँ उचित है ? सराहना से परे गेयता से भरपूर श्रृंगार रचना | नमन मूर्धन्य कवि दुष्यंत जी को |धन्यवाद रविन्द्र जी इतनी भावपूर्ण रचना का स्मरण कराने के लिए |
जवाब देंहटाएंजी सहृदय आभार .......आदरणीया
हटाएंलेखन के शिखरों की किन शब्दों में सराहना की जाए........सत्य कहा आपने
सुस्वागतम .....जी