गूगल से साभार |
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है
मैं हर लम्हे मे सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है
मेरा दिल बारिशों मे फूल जैसा
ये बच्चा रात मे रोता बहुत है
वो अब लाखों दिलो से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है
- बशीर बद्र
बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंजी सादर आभार
हटाएंबेहतरीन गज़ल ।।
जवाब देंहटाएंजी हृदय आभार...
हटाएंउम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआभार पढ़वाने के लिए..
सादर..
जी आभार.... सादर
हटाएंआपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।
यही ग़ज़ल आज मेरी धरोहर में भी..
जवाब देंहटाएंसाभार.
सादर..
जी आभार सह्दय...
हटाएं'मेरी धरोहर'में 'मै कब कहता हूँ'...बशीर बद्र जी की गज़ल संकलित करने के लिए
सादर..