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मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

'आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे' - "प. नरेन्द्र शर्मा"

गूगल से साभार 
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
आज से दो प्रेम योगी, अब वियोगी ही रहेंगे |
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बांधू,
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिये, यह योग साधूँ !
जानता हूँ अब न हम तुम मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आयेगा मधुमास फिरभी, आयेगी श्यामल घटा घिर,
आँख भर कर देख लो अब, मैं न आउंगा कभी फिर !
प्राण तन से बिछुड़कर कैसे रहेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

अब न रोना, व्यर्थ होगा, हर घड़ी आँसू बहाना,
आज से अपने वियोगी, ह्दय को हँसना सिखाना,
अब न हँसने के लिये, हम-तुम मिलेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आज से हम-तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे 
दूर होंगे पर सदा को, ज्यो नदी के दो किनारे 
सिन्धुतट पर भी न दो जो मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

तट नदी के, भग्न उर के, दो विभागों के सदृश्य है,
चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है !
आज अथइति पर न पथ में, मिल सकेंगे 
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

यदि मुझे उसपार का भी मिलन का विश्वास होता,
सच कहूंगा, न मैं असहाय या निरुपाय होता,
किन्तु क्या अब स्वप्न में भी मिल सकेंगे ?
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आज तक हुआ सच स्वप्न, जिसने स्वप्न देखा ?
कल्पना के मृदुल कर से मिटी किसकी भाग्यरेखा ?
अब कहाँ सम्भव कि हम फिर मिल सकेंगे !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

आह ! अंतिम रात वह, बैठी रही तुम पास मेरे,
शीश काँधे पर धरे, घन कुंतल से गात घेरे 
क्षीण स्वर में कहा था, "अब कब मिलेंगे"
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?

"कब मिलेंगे", पूछता मैं, विश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनीनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब ,मिलेंगे" !
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
- प. नरेन्द्र शर्मा 






2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।मन प्रसन्न हो गया।

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    1. जी सह्दय आभार.. अपनी बहुमुल्य प्रतिक्रिया देने के लिए

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