सूने घर में
कोने-कोने
मकड़ी बुनती जाल
अम्मा बिन
आँगन सूना है
बाबा बिन दालान
चिट्ठी आई है
बहिना की
साँसत में है जान,
नित-नित
नए तगादे भेजे
बहिना की ससुराल ।
भइया तो
परदेश विराजे
कौन करे अब चेत
साहू के खाते में
बंधक है
बीघा भर खेत,
शायद
कुर्की ज़ब्ती भी
हो जाए अगले साल ।
ओर छोर
छप्पर का टपके
उनके काली रात
शायद अबकी
झेल न पाए
भादों की बरसात
पुरखों की
यह एक निशानी
किसे सुनाए हाल ।
फिर भी
एक दिया जलता है
जब साँझी के नाम
लगता
कोई पथ जोहे
खिड़की के पल्ले थाम,
बड़ी-बड़ी दो आँखें
पूछें
फिर-फिर वही सवाल ।
सूने घर में
कोने-कोने
मकड़ी बुनती जाल ।
- सत्यनारायण