गूगल से साभार |
करता है माधो जब कोई इतना ज्यादा प्यार...
इतना ज्यादा प्यार कि किसी के भीतर से भी
निकाल लेता हो कच्चे अमरुद और कपास के गुड्डे
इतना प्यार कि कहने लगता हो कि संसार रंग बिरंगी
टिकटों का एक अलबम भर है
जो पैंतालीस साल की उम्र में
खोज निकाले अपने स्कूल की कापी
और उसके पन्नों से बनाये हवाई जहाज
इतना ज्यादा प्यार कि निगल जाये स्याही की दवात,
शिराओं में बजे दूसरों को न सुनाई देने वाला शंख
इतना प्यार कि शुद्ध न रहे उच्चारण, वाक्य पूरे न हों
तो माधो जब करता है कोई प्यार
तो उसके हाथ से न तो उजड़ता है कोई घोंसला
न फूटता है कोई कांच का गिलास
न हो सकता उसके हाथों कभी तिनके का भी अनिष्ट!
-उदय प्रकाश
सहृदय आभार...."पांच लिंकों का आनन्द में" 'करता है माधो जब कोई इतना ज्यादा प्यार' -उदय प्रकाश जी की रचना साझा करने के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर आभार...आदरणीय
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया के लिए।
"तो माधो जब करता है कोई प्यार
जवाब देंहटाएं....
न हो सकता उसके हाथों कभी तिनके का भी अनिष्ट!"
वाह! बहुत ही प्रभावी बातें कहा आपने। परिस्थितियाँ कैसी भी हो अपना होश नहीं खोना चाहिए। और जो जन कोई भी अनिष्ट ना करे तो माधव........
सहृदय आभार ....महोदय
हटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए.
बेहतरीन रचना ..............
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार जी
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति..।
जवाब देंहटाएंसादर आभार ....जी
हटाएंअद्भुत सुंदर कोमल भावों वाली सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार ....जी
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