शनिवार, 29 जून 2019

बातें - नागार्जुन

बातें–
हँसी में धुली हुईं
सौजन्य चंदन में बसी हुई
बातें–
चितवन में घुली हुईं
व्यंग्य-बंधन में कसी हुईं
बातें–
उसाँस में झुलसीं
रोष की आँच में तली हुईं
बातें–
चुहल में हुलसीं
नेह–साँचे में ढली हुईं
बातें–
विष की फुहार–सी
बातें–
अमृत की धार–सी 
बातें–
मौत की काली डोर–सी 
बातें–
जीवन की दूधिया हिलोर–सी
बातें–
अचूक वरदान–सी
बातें–
घृणित नाबदान–सी
बातें–
फलप्रसू, सुशोभन, फल–सी
बातें–
अमंगल विष–गर्भ शूल–सी
बातें–
क्य करूँ मैं इनका?
मान लूँ कैसे इन्हें तिनका?
बातें–
यही अपनी पूंजी¸ यही अपने औज़ार
यही अपने साधन¸ यही अपने हथियार
बातें–
साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा
बना लूँ वाहन इन्हें घुटन का, घिन का?
क्या करूँ मैं इनका?
बातें–
साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा
स्तुति करूँ रात की, जिक्र न करूँ दिन का?
क्या करूँ मैं इनका?

- नागार्जुन

मंगलवार, 25 जून 2019

कविता - नीलम सिंह

शब्दों के जोड़-तोड़ से 
गणित की तरह 
हल की जा रही है जो 
वह कविता नहीं है 

अपनी सामर्थ्य से दूना 
बोझ उठाते-उठाते 
चटख गई हैं जिनकी हड्डियाँ 
उन मज़दूरों के 
ज़िस्म का दर्द है कविता 
भूख से लड़ने के लिये 
तवे पर पक रही है जो 
उस रोटी की गंध है कविता 

उतार सकता है जो 
ख़ुदा के चेहरे से भी नकाब 
वो मज़बूत हाथ है कविता 
जीती जा सकती है जिससे 
बड़ी से बड़ी जंग 
वह हथियार है कविता 

जिसके आँचल की छाया में 
पलते हैं हमारी आँखों के 
बेहिसाब सपने 
उस माँ का प्यार है कविता 
जिसके तुतलाते स्वर 
कहना चाहते हैं बहुत कुछ 
उस बच्चे की नई वर्णमाला का 
अक्षर है कविता 

कविता एकलव्य का अँगूठा नहीं है 
कि गुरु-दक्षिणा के बहाने 
कटवा दिया जाय 
वह अर्जुन का गाण्डीव है, कृष्ण का सुदर्शन चक्र ।

कविता नदी की क्षीण रेखा नहीं 
समुद्र का विस्तार है 
जो गुंजित कर सकती है 
पूरे ब्रह्माण्ड को 
वह झंकार है कविता ।

- नीलम सिंह

सोमवार, 24 जून 2019

उन्माद के खिलाफ़ - प्रयाग शुक्ल

उन्माद कभी ज्यादा देर तक नहीं
ठहरता,
यही है लक्षण उन्माद का ।
बीजों में, पेड़ों में, पत्तों में नहीं होता
उन्माद
आँधी में होता है
पर वह भी ठहरती नहीं
ज्यादा देर तक

जब हम होते हैं उन्माद में
देख नहीं पाते फूलों के रंग
जैसे कि वे हैं ।
उतर जाता उन्माद नदी का भी
पर जो देखता है नदी का उन्माद भी
वह उन्माद में नहीं होता ।

उन्माद सागर का होता है
पर वह भी नहीं रहता
उन्माद में बराबर ।
सूर्य और चन्द्र में तो होता ही
नहीं उन्माद,
होता भी है तो ग्रहण

जो हैं उन्माद में
उन्हें आएँगी ही
नहीं समझ में यह पंक्तियाँ
प्रतीक्षा में रहेगी
कविता यह
उन्माद के उतरने की ।
- प्रयाग शुक्ल

शुक्रवार, 21 जून 2019

निविद - गीत चतुर्वेदी

हमने साथ चलना शुरू किया था
हमने साथ रहना शुरू किया था 
धीरे-धीरे मैं अलग होता चला गया 
एक कमरा मैंने ऐसा बना लिया है 
जहाँ अब किसी का भी प्रवेश निषिद्ध है 
जो भी इसे पढ़े, कृपया इसे आरोप नमाने 
यह महज़ एक आत्म-स्वीकृति है 

उससे दूर रहो जिसमें हीनभावना होती है 
तुम उसकी हीनता को दूर नहीं कर पाओगे 
ख़ुद को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में वह रोज़ तुम्हारी हत्याकरेगा 

मैं समंदर के भीतर से जन्मा हूँ 
लेकिन मुझे सी-फूड वाले शो-केस में मत रखना 
बुरादे में बदले दूध की तरह रहूंगा तुम्हारी आलमारी में 
जब जी चाहे घोलकर पी जाना 

द्रव में बदला हुआ प्रकाश हूँ
तुम्हारी नाभि मेरे होने के द्रव से भरी है 
मैं सूखकर कस्तूरी बन गया

सांस की धुन पर गाती है मेरी आत्मा 
मेरा हृदय घड़ी है स्पंदन तुम्हारे प्रेम की टिक-टॉक
तुम्हारे बालों की सबसे उलझी लट हूँ 
जितना खिंचूंगा उतना दुखूँगा 

इस देश के भीतर वह देश हूं मैं जो हज़ारों साल पहले खो गया 
इस देह के भीतर वह देह हूं मैं जो हर अस्थि-कास्थि को खा गया 

तुम जागती हो निविद जागता है
तुम दोनों के साथ सारे देव जागते हैं 

रात-भर चूमता रहता तुम्हारी पलकों को नींद के होंठों से 
रात-भर तुम्हारी हथेली पर रेखता रहा 
सिलवटों से भरा है तुम्हारी आंख का पानी 
फेंके हुए सारे कंकड़ अब वापस लेता हूँ

- गीत चतुर्वेदी 

गुरुवार, 20 जून 2019

वो तो मुद्दत से जानता है मुझे - बेकल उत्साही

वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे

रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे

सुब्‌ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे

होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे

मैं हूँ बेकल मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे
 - बेकल उत्साही


बुधवार, 19 जून 2019

ये शब्द वही हैं - कुंवर नारायण

यह जगह वही है
जहां कभी मैंने जन्म लिया होगा
इस जन्म से पहले

यह मौसम वही है
जिसमें कभी मैंने प्यार किया होगा
इस प्यार से पहले

यह समय वही है
जिसमें मैं बीत चुका हूँ कभी
इस समय से पहले

वहीं कहीं ठहरी रह गयी है एक कविता
जहां हमने वादा किया था कि फिर मिलेंगे

ये शब्द वही हैं
जिनमें कभी मैंने जिया होगा एक अधूरा जीवन
इस जीवन से पहले।
- कुंवर नारायण


रविवार, 16 जून 2019

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको - मीराबाई

राधाजी को लागे बिंद्रावनमें नीको॥ध्रु०॥
ब्रिंदाबनमें तुलसीको वडलो जाको पानचरीको॥ रा०॥१॥
ब्रिंदावनमें धेनु बहोत है भोजन दूध दहींको॥ रा०॥२॥
ब्रिंदावनमें रास रची है दरशन कृष्णजीको॥ रा०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर हरिबिना सब रंग फिको॥ रा०॥४॥
- मीराबाई

कौन जाने? - बालकृष्ण राव

झुक रही है भूमि बाईं ओर, फ़िर भी
कौन जाने?
नियति की आँखें बचाकर,
आज धारा दाहिने बह जाए।

जाने 
किस किरण-शर के वरद आघात से
निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का,
कब रँग उठे। 
सहसा मुखर हो
मूक क्या कह जाए?

'सम्भव क्या नहीं है आज-
लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की,
कर रही है प्रेरणा, 
यह प्रश्न अंकित? 

कौन जाने
आज ही नि:शेष हों सारे 
सँजोये स्वप्न,
दिन की सिध्दियों में
कौन जाने
शेष फिर भी,
एक नूतन स्वप्न की सम्भावना रह जाए।

 - बालकृष्ण राव

बुधवार, 12 जून 2019

मैंने आहुति बन कर देखा - अज्ञेय

मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने, 
मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने? 
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है, 
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने?  

मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले? 
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले? 
मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने? 
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने?  

पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे? 
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे? 
मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने- 
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने!  

अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है- 
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है? 
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है- 
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है  

मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया- 
मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है! 
मैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ 
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूँ  

मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने 
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने! 
भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने- 
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने

- अज्ञेय


सोमवार, 10 जून 2019

सिपाही - रामधारी सिंह "दिनकर"

वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ,
ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्यों ही, कभी न मोह हुआ।
जीवन की क्या चहल-पहल है, इसे न मैने पहचाना,
सेनापति के एक इशारे पर मिटना केवल जाना।

मसि की तो क्या बात? गली की ठिकरी मुझे भुलाती है,
जीते जी लड़ मरूं, मरे पर याद किसे फिर आती है?
इतिहासों में अमर रहूँ, है एसी मृत्यु नहीं मेरी,
विश्व छोड़ जब चला, भुलाते लगती फिर किसको देरी?

जग भूले पर मुझे एक, बस सेवा धर्म निभाना है,
जिसकी है यह देह उसी में इसे मिला मिट जाना है।
विजय-विटप को विकच देख जिस दिन तुम हृदय जुड़ाओगे,
फूलों में शोणित की लाली कभी समझ क्या पाओगे?

वह लाली हर प्रात क्षितिज पर आ कर तुम्हे जगायेगी,
सायंकाल नमन कर माँ को तिमिर बीच खो जायेगी।
देव करेंगे विनय किंतु, क्या स्वर्ग बीच रुक पाऊंगा?
किसी रात चुपके उल्का बन कूद भूमि पर आऊंगा।

तुम न जान पाओगे, पर, मैं रोज खिलूंगा इधर-उधर,
कभी फूल की पंखुड़ियाँ बन, कभी एक पत्ती बन कर।
अपनी राह चली जायेगी वीरों की सेना रण में,
रह जाऊंगा मौन वृंत पर, सोच न जाने क्या मन में!

तप्त वेग धमनी का बन कर कभी संग मैं हो लूंगा,
कभी चरण तल की मिट्टी में छिप कर जय जय बोलूंगा।
अगले युग की अनी कपिध्वज जिस दिन प्रलय मचाएगी,
मैं गरजूंगा ध्वजा-श्रंग पर, वह पहचान न पायेगी।

'न्यौछावर मैं एक फूल पर', जग की ऎसी रीत कहाँ?
एक पंक्ति मेरी सुधि में भी, सस्ते इतने गीत कहाँ?

कविते! देखो विजन विपिन में वन्य कुसुम का मुरझाना,
व्यर्थ न होगा इस समाधि पर दो आँसू कण बरसाना
 - रामधारी सिंह "दिनकर"

रविवार, 9 जून 2019

प्यास के भीतर प्यास - विजयदेव नारायण साही

प्यास को बुझाते समय
हो सकता है कि किसी घूँट पर तुम्हें लगे
कि तुम प्यासे हो, तुम्हें पानी चाहिए
फिर तुम्हें याद आए
कि तुम पानी ही तो पी रहे हो
और तुम कुछ भी कह न सको।

प्यास के भीतर प्यास
लेकिन पानी के भीतर पानी नहीं।
 - विजयदेव नारायण साही

शनिवार, 8 जून 2019

वह देश कौन सा है - रामनरेश त्रिपाठी

मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। 
सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है?

जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। 
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। 
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है?

जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे। 
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?

जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे। 
दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है?

मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकती। 
आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है?

जिसकी अनंत धन से धरती भरी पड़ी है। 
संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है?

सब से प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा वह देश कौन-सा है?

पृथ्वी-निवासियों को जिसने प्रथम जगाया।
शिक्षित किया सुधारा वह देश कौन-सा है?

जिसमें हुए अलौकिक तत्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी।
गौतम, कपिल, पतंजलि, वह देश कौन-सा है?

छोड़ा स्वराज तृणवत आदेश से पिता के।
वह राम थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?

निस्वार्थ शुद्ध प्रेमी भाई भले जहाँ थे।
लक्ष्मण-भरत सरीखे वह देश कौन-सा है?

देवी पतिव्रता श्री सीता जहाँ हुईं थीं।
माता पिता जगत का वह देश कौन-सा है?

आदर्श नर जहाँ पर थे बालब्रह्मचारी।
हनुमान, भीष्म, शंकर, वह देश कौन-सा है?

विद्वान, वीर, योगी, गुरु राजनीतिकों के।
श्रीकृष्ण थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?

विजयी, बली जहाँ के बेजोड़ शूरमा थे।
गुरु द्रोण, भीम, अर्जुन वह देश कौन-सा है?

जिसमें दधीचि दानी हरिचंद कर्ण से थे।
सब लोक का हितैषी वह देश कौन-सा है?

बाल्मीकि, व्यास ऐसे जिसमें महान कवि थे।
श्रीकालिदास वाला वह देश कौन-सा है?

निष्पक्ष न्यायकारी जन जो पढ़े लिखे हैं।
वे सब बता सकेंगे वह देश कौन-सा है?

छत्तीस कोटि भाई सेवक सपूत जिसके।
भारत सिवाय दूजा वह देश कौन-सा है?
- रामनरेश त्रिपाठी

मंगलवार, 4 जून 2019

तप रे! - सुमित्रानंदन पंत

तप रे, मधुर मन!  

विश्व-वेदना में तप प्रतिपल, 
जग-जीवन की ज्वाला में गल, 
बन अकलुष, उज्जवल औ\' कोमल 
तप रे, विधुर-विधुर मन!  

अपने सजल-स्वर्ण से पावन 
रच जीवन की पूर्ति पूर्णतम 
स्थापित कर जग अपनापन, 
ढल रे, ढल आतुर मन!  

तेरी मधुर मुक्ति ही बन्धन, 
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन, 
निज अरूप में भर स्वरूप, मन 
मूर्तिमान बन निर्धन! 
गल रे, गल निष्ठुर मन!
- सुमित्रानंदन पंत

रविवार, 2 जून 2019

बालिका का परिचय --- सुभद्राकुमारी चौहान

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की  है  लाली.
शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली .

दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली .
उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली .

सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की.
जीवित ज्योति नष्ट नयनों की, सच्ची लगन मनस्वी की.

बीते हुए बालपन की यह, क्रीड़ापूर्ण वाटिका है .
वही मचलना, वही किलकना,हँसती हुई नाटिका है .

मेरा मंदिर,मेरी मसजिद, काबा काशी यह मेरी .
पूजा पाठ,ध्यान,जप,तप,है घट-घट वासी यह मेरी.

कृष्णचन्द्र की क्रीड़ाओं को अपने आंगन में देखो .
कौशल्या के मातृ-मोद को, अपने ही मन में देखो.

प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास.
जीव-दया जिनवर गौतम की,आओ देखो इसके पास .

परिचय पूछ रहे हो मुझसे, कैसे परिचय दूँ इसका .
वही जान सकता है इसको, माता का दिल है जिसका .
-- सुभद्राकुमारी चौहान


शनिवार, 1 जून 2019

हम को यूँ ही प्यासा छोड़ - बेकल उत्साही

हम को यूँ ही प्यासा छोड़
सामने चढ़ता दरिया छोड़

जीवन का क्या करना मोल
महंगा ले-ले, सस्ता छोड़

अपने बिखरे रूप समेट
अब टूटा आईना छोड़

चलने वाले रौंद न दें
पीछे डगर में रुकना छोड़

हो जाएगा छोटा क़द
ऊँचाई पर चढ़ना छोड़

हमने चलना सीख लिया
यार, हमारा रस्ता छोड़

ग़ज़लें सब आसेबी हैं
तनहाई में पढ़ना छोड़

दीवानों का हाल न पूछ
बाहर आजा परदा छोड़

बेकल अपने गाँव में बैठ
शहरों-शहरों बिकना छोड़

- बेकल उत्साही