वो तो मुद्दत से जानता है मुझे
फिर भी हर इक से पूछता है मुझे
रात तनहाइयों के आंगन में
चांद तारों से झाँकता है मुझे
सुब्ह अख़बार की हथेली पर
सुर्ख़ियों मे बिखेरता है मुझे
होने देता नही उदास कभी
क्या कहूँ कितना चाहता है मुझे
मैं हूँ बेकल मगर सुकून से हूँ
उसका ग़म भी सँवारता है मुझे
- बेकल उत्साही
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22 -06-2019) को "बिकती नहीं तमीज" (चर्चा अंक- 3374) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी