काव्य-धरा

शनिवार, 1 मई 2021

सूने घर में / सत्यनारायण

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सूने घर में कोने-कोने मकड़ी बुनती जाल अम्मा बिन आँगन सूना है बाबा बिन दालान चिट्ठी आई है बहिना की साँसत में है जान, नित-नित नए तगादे भेजे बह...
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बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

बेटी की किलकारी - ताराप्रकाश जोशी

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बेटी की किलकारी कन्या भ्रूण अगर मारोगे मां दुरगा का शाप लगेगा। बेटी की किलकारी के बिन आंगन-आंगन नहीं रहेगा। जिस घर बेटी जन्म न...
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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

एक बरस बीत गया

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झुलासाता जेठ मास   शरद चांदनी उदास   सिसकी भरते सावन का    अंतर्घट रीत गया   एक बरस बीत गया   सीकचों मे सिमटा जग   किंतु व...
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

एक क्रिकेट मैच को देखते हुए

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मैं जानता था कि वे हार रहे थे! मैं निश्चिंत होकर अपने बाकी पड़े कामों को निपटा सकता था मगर उन्हें हारते हुये देखने के सु...
मंगलवार, 27 अगस्त 2019

एक तुम हो - माखनलाल चतुर्वेदी

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गगन पर दो सितारे: एक तुम हो, धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो, ‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो,  हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो,  रहे...
शनिवार, 24 अगस्त 2019

मेरा रँग दे बसन्ती चोला ~ पीयूष मिश्रा

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मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माई... मेरे चोले में तेरे माथे का पसीना है और थोड़ी सी तेरे आँचल की बूँदें हैं और थोड़ी सी है तेरे काँप...
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बुधवार, 21 अगस्त 2019

मैं कहीं और भी होता हूँ ~ कुंवर नारायण

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मैं कहीं और भी होता हूँ जब कविता लिखता कुछ भी करते हुए कहीं और भी होना धीरे-धीरे मेरी आदत-सी बन चुकी है हर वक़्त बस वहीं ह...
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रवीन्द्र भारद्वाज
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