रविवार, 9 जून 2019

प्यास के भीतर प्यास - विजयदेव नारायण साही

प्यास को बुझाते समय
हो सकता है कि किसी घूँट पर तुम्हें लगे
कि तुम प्यासे हो, तुम्हें पानी चाहिए
फिर तुम्हें याद आए
कि तुम पानी ही तो पी रहे हो
और तुम कुछ भी कह न सको।

प्यास के भीतर प्यास
लेकिन पानी के भीतर पानी नहीं।
 - विजयदेव नारायण साही

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2019) को "राह दिखाये कौन" (चर्चा अंक- 3363) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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