शनिवार, 4 मई 2019

विदाभास - रामदरश मिश्र

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फिर हवा बहने लगी कहने लगीं वनराइयाँ
काँपने फिर-फिर लगीं ठहरी हुई परछाइयाँ।

थरथराने से लगे कुछ पंख अपने नीड़ में
एक छाया छू मुझे उड़, खो गई किसी भीड़ में
ताल फिर हिलने लगा, फटने लगी फिर काइयाँ।

एक भटकी नाव धारा पर निरखती दीठियाँ
प्रान्तरों को चीरतीं फिर इंजनों की सीटियाँ
अब कहाँ ले जाएंगी यायावरी तनहाइयाँ।

भीत पर अंकित दिनों के नाम फिर हिलने लगे
डायरी के पृष्ठ कोरे फड़फड़ा खुलने लगे
उभरने दृग में लगीं पथ की नमी गहराइयाँ।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को विश्व हास्य दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!


    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/05/2019 की बुलेटिन, " विश्व हास्य दिवस की हार्दिक शुभकामनायें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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