शुक्रवार, 1 मार्च 2019

दिल, मेरी कायनात अकेली है—और मैं - शमशेर बहादुर सिंह

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दिल, मेरी कायनात अकेली है—और मैं !
बस अब ख़ुदा की जात अकेली है, और मैं !

तुम झूठ और सपने का रंगीन फ़र्क थे :
तुम क्या, ये एक बात है, और मैं !

सब पार उतर गए हैं, अकेला किनारा है :
लहरें अकेली रात अकेली है, और मैं !

तुम हो भी, और नहीं भी हो— इतने हसीन हो :
यह कितनी प्यारी रात अकेली है, और मैं !

मेरी तमाम रात का सरमाया एक शम‍अ
ख़ामोश, बेसबात, अकेली है— और मैं !

'शमशेर' किस को ढूँढ़ रहे हो हयात में
बेजान-सी इयात अकेली है, और मैं !
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- शमशेर बहादुर सिंह


चित्र - गूगल से साभार 

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