मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी - गुलज़ार

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कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवज़ें

पूर्णमासी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे 
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
भीगी-भीगी उदास आवाज़ें
नाम लेकर पुकारती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में...

पूर्णमासी की रात जंगल में
चाँद जब झील में उतरता है
गुनगुनाती हुई हवा जानम
पत्ते-पत्ते के कान में जाकर
नाम ले ले के पूछती है तुम्हें

पूर्णमासी की रात जंगल में
तुमको ये चाँदनी आवाज़ें 
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी


7 टिप्‍पणियां:

  1. गुलजार साहब की रचना....., वाह !!

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  2. वाह शानदार।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 मई 2019 को साझा की गई है......... मुखरित मौन पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. गुलजार साहब की रचना अतुलनीय होती है।

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  5. रवीन्द्र जी बहुत प्यारी कविता आपने शेयर की।
    सरस सुंदर।
    गुलजार साहब हर दिल अजीज शायर हैं।

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