गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

चलते-चलते - भारत भूषण अग्रवाल

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मैं चाह रहा हूँ, गाऊँ केवल एक गान, आख़िरी समय 
पर जी में गीतों की भीड़ लगी
मैं चाह रहा हूँ, बस, बुझ जाएँ यहीं प्राण, रुक जाए हृदय 
पर साँसों में तेरी प्रीति जगी

इसलिए मौन हो जाता हूँ, स्वीकार करो यह विदा 
आज आख़िरी बार;
मत समझो मेरी नीरवता को व्यथा-जात 
या मेरा निज पर अनाचार।

मैं आज बिछुड़ कर भी सचमुच सुखी हुआ मेरी रानी!
इतना विश्वास करो मुझ पर
मैं सुखी हूँ कि तुमने अपनी नारी-जन सुलभ चातुरी से
बिखरा दी मेरी नादानी
पानी-पानी करके सत्वर

मैं सुखी हूँ कि इस विदा-समय भी नहीं नयन गीले तेरे,
मैं सुखी हूँ कि तुमने न बँटाए कभी अलभ्य स्वप्न मेरे,
मैं सुखी हूँ कि कर सकीं मुझे तुम निर्वासित यों अनायास, 
मैं सुखी हूँ कि मेरा प्रमाद बन सका नहीं तेरा विलास।
मैं सुखी हूँ कि - पर रहने दो, तुम बस इतना ही जानो
मैं हूँ आज सुखी,
अन्तिम बिछोह, दो विदा आज आख़िरी बार ओ इन्दुमुखी!
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- भारत भूषण अग्रवाल


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