शनिवार, 30 मार्च 2019

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की दो कविताएँ

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सादर 

काव्य-धरा में आज विशेष तरह की प्रस्तुती 
उम्मीद हैं पसंद आयेगा आपको 

Image result for उठ मेरी बेटी सुबह हो गई / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
पेड़ों के झुनझुने,
बजने लगे;
लुढ़कती आ रही है
सूरज की लाल गेंद।
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

तूने जो छोड़े थे,
गैस के गुब्बारे,
तारे अब दिखाई नहीं देते,
(जाने कितने ऊपर चले गए)
चांद देख, अब गिरा, अब गिरा,
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई।

लाउडस्पीकरों की होड़
हर गाना पहले से ज़्यादा ‘मस्त’ है
बीट ऐसी कि कुर्सी भी खड़ी हो के नाचने लगे
भीड़ के महासागर मुंबई में


प्रस्तुतकर्त्ता - रवीन्द्र भारद्वाज

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