गुरुवार, 31 जनवरी 2019

कारवां गुज़र गया -गोपालदास "नीरज"


स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
-गोपालदास "नीरज"

बुधवार, 30 जनवरी 2019

अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने -ज़फ़र गोरखपुरी


अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने
हम ने सोच रखा है रात यूँ गुज़ारेंगे
धड़कनें बिछा देंगे शोख़ तेरे क़दमों पे
हम निगाहों से तेरी आरती उतारेंगे

तू कि आज क़ातिल है, फिर भी राहत-ए-दिल है
ज़हर की नदी है तू, फिर भी क़ीमती है तू
पस्त हौसले वाले तेरा साथ क्या देंगे
ज़िन्दगी इधर आ जा, हम तुझे गुज़ारेंगे

आहनी कलेजे को, ज़ख़्म की ज़रूरत है
उँगलियों से जो टपके, उस लहू की हाज़त है
आप ज़ुल्फ़-ए-जानां के, ख़म सँवारिए साहब
ज़िन्दगी की ज़ुल्फ़ों को आप क्या सँवारेंगे

हम तो वक़्त हैं पल हैं, तेज़ गाम घड़ियाँ हैं
बेकरार लमहे हैं, बेथकान सदियाँ हैं
कोई साथ में अपने, आए या नहीं आए
जो मिलेगा रस्ते में हम उसे पुकारेंगे
-ज़फ़र गोरखपुरी

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

तुम्हारा होना-1 -जितेन्द्र श्रीवास्तव


तुम हो यहीं आस-पास
जैसे रहती हो घर में

घर से दूर
यह एक अकेला कमरा
भरा है तुम्हारे होने के अहसास से

होना
सिर्फ़ देह का होना कहाँ होता है !
-जितेन्द्र श्रीवास्तव

सोमवार, 28 जनवरी 2019

क्षण भर को क्यों प्यार किया था? -हरिवंशराय बच्चन


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

‘यह अधिकार कहाँ से लाया?’
और न कुछ मैं कहने पाया -
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

वह क्षण अमर हुआ जीवन में,
आज राग जो उठता मन में -
यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
-हरिवंशराय बच्चन

रविवार, 27 जनवरी 2019

मैं इसलिए लिख रहा हूं -अच्युतानंद मिश्र


मैं इसलिए लिख रहा हूं

मैं इसलिए लिख रहा हूं 
कि मेरे हाथ काट दिए जाएं
मैं इसलिए लिख रहा हूं
कि मेरे हाथ
तुम्हारे हाथों से मिलकर
उन हाथों को रोकें
जो इन्हें काटना चाहते हैं.
-अच्युतानंद मिश्र

शनिवार, 26 जनवरी 2019

प्रेम की, सचाई की, बोलियाँ ही गायब हैं -अशोक अंजुम

प्रेम की सच्चाई की बोलियां ही गायब हैं
आदमी के अंदर से बिजलियां ही गायब हैं

साबजी पधारे थे सैर को गुलिस्तां की
तब से इस चमन की सब तितलियां ही गायब हैं

हाथ क्या मिलाया था दिल ही दे दिया था उन्हें
हाथ अपने देखे तो उंगलियां ही गायब हैं

यूं ही गर्भ पे जो चली आपकी ये मनमानी
कल जहां से देखोगे ल़डकियां ही गायब हैं

वे भले प़डोसी थे, आए थे नहाने को
बाथरूम की तब से टौंटियां ही गायब हैं

चीर को हरण कैसे अब करोगे दुशासन
जींस में हैं पांचाली, सा़डयां ही गायब हैं

होटलों में खाते हैं वे चिकिनओबिरयानी
और कितने हाथों से रोटियां ही गायब हैं।
-अशोक अंजुम

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

ताजमहल -एकांत श्रीवास्तव


तुम प्रेम करो
मगर ताजमहल के बारे में मत सोचो

यों भी यह साधारण प्रेमियों की हैसियत से
बाहर की वस्तु है

अगर तुम उस स्त्री को- जिससे तुम
प्रेम करते हो- कुछ देना चाहते हो
तो बेहतर है कि जीवन रहते दो

मसलन कातिक की क्यारी से
कोई बड़ा पीला गेंदे का फूल
यह अधिक जीवंत उपहार होगा

यों भी इतिहास गवाह है
कि जो ताजमहल बनाता है
उसके दोनों हाथ काट दिए जाते हैं ।
-एकांत श्रीवास्तव

गुरुवार, 24 जनवरी 2019

दोहे -हुल्लड़ मुरादाबादी



कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।

बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।

गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।

पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।

नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।

बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए।

हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय।

हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय।

बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय।

दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,
जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय।
-हुल्लड़ मुरादाबादी

बुधवार, 23 जनवरी 2019

तेरा है -अशोक चक्रधर

तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है,
अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।

तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं
कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।

छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला,
ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।

भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी
न भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।

न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ी
है, चुप्पियों में मुकम्मिल बयान तेरा है।

तू अपने देश के दर्पण में ख़ुद को देख ज़रा
सरापा जिस्म ही देदीप्यमान तेरा है।

हर एक चीज़ यहां की, तेरी है, तेरी है,
तेरी है क्योंकि सभी पर निशान तेरा है।

हो चाहे कोई भी तू, हो खड़ा सलीक़े से
ये फ़िल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा है।
-अशोक चक्रधर

चित्र गूगल से साभार 

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

खुल गई नाव -अज्ञेय

       खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
        डूबा सागर-तीरे।

धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
        मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
        साथी लगा बुलाने।

तब फिर सिहरी हवा
लहरियाँ काँपीं
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
        जागी धीरे-धीरे।

 -अज्ञेय


चित्र गूगल से साभार 

सोमवार, 21 जनवरी 2019

भीगी हुई आँखों का ये मन्ज़र न मिलेगा -बशीर बद्र

गूगल से साभार 

भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा

फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें
बाज़ार में ऐसा कोई ज़ेवर न मिलेगा

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मुहब्बत
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा
-बशीर बद्र

रविवार, 20 जनवरी 2019

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये -दुष्यंत कुमार

गूगल से साभार 
अब अंतर में अवसाद नहीं 
चापल्य नहीं उन्माद नहीं 
सूना-सूना सा जीवन है 
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं 

तव स्वागत हित हिलता रहता 
अंतरवीणा का तार प्रिये ..

इच्छाएँ मुझको लूट चुकी 
आशाएं मुझसे छूट चुकी 
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ 
मेरे हाथों से टूट चुकी 

खो बैठा अपने हाथों ही 
मैं अपना कोष अपार प्रिये 
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..
-दुष्यंत कुमार

शनिवार, 19 जनवरी 2019

वह चिड़िया जो - केदारनाथ अग्रवाल

गूगल से साभार 

वह चिड़िया जो-
चोंच मार कर
दूध-भरे जुंडी के दाने
रुचि से, रस से खा लेती है
वह छोटी संतोषी चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे अन्‍न से बहुत प्‍यार है।


वह चिड़िया जो-
कंठ खोल कर
बूढ़े वन-बाबा के खातिर
रस उँडेल कर गा लेती है
वह छोटी मुँह बोली चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे विजन से बहुत प्‍यार है।


वह चिड़िया जो-
चोंच मार कर
चढ़ी नदी का दिल टटोल कर
जल का मोती ले जाती है
वह छोटी गरबीली चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे नदी से बहुत प्‍यार है।
- केदारनाथ अग्रवाल

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

मुझे कदम-कदम पर -गजानन माधव मुक्तिबोध

गूगल से साभार 

मुझे कदम-कदम पर
चौराहे मिलते हैं
बांहें फैलाए!
एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटतीं,
मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ,
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तजुर्बे और अपने सपने....
सब सच्चे लगते हैं,
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ,
जाने क्या मिल जाए!

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है,
हर एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है,
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीडा है,
पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ,
इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूँ,
अजीब है जिंदगी!
बेवकूफ बनने की खातिर ही
सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ,
और यह देख-देख बडा मजा आता है
कि मैं ठगा जाता हूँ...
हृदय में मेरे ही,
प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है
हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,
कि जगत.... स्वायत्त हुआ जाता है।
कहानियां लेकर और
मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते
जहां जरा खडे होकर
बातें कुछ करता हूँ
.... उपन्यास मिल जाते ।
-गजानन माधव मुक्तिबोध

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है -वसीम बरेलवी

गूगल से साभार 

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते

मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते

जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते

ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते

बिसाते -इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता
यह और बात कि बचने के घर नहीं आते

'वसीम' जहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
-वसीम बरेलवी

बुधवार, 16 जनवरी 2019

कम नहीं हुआ है किसी पर मरने का मूल्य -दिनेश कुशवाह

गूगल से साभार
बहुत छोटी हो गई है हमारी दुनिया 
बहुत कम हुई है हमारी दुनिया की दूरी
पर हमारा भय कम नहीं हुआ है।

अलंघ्य कुछ भी नहीं है हमारी दुनिया में आज
पर वहीं की वहीं खड़ी है दो कमरों के बीच
दीवार दुर्भेद्य
जिसे दो जन हटाना चाहते हैं पूरे मन से 
जबकि अभी अभी गिरी है बर्लिन की दीवार। 

देशों ने चखा है स्वतंत्रता का स्वाद
पर हमारे मुँह का कसैलापन कम नहीं हुआ है।

आँखों का कोना सहलाने जितनी मुलायमियत से 
छूते ही कुछ बटनें
एक आदमी बोलता है हैलो
सात समुन्दर पार
पर उस आदमी के लिए
हमारा तरसना कम नहीं हुआ।

आपसी बातचीत बढ़ी है दुनिया में
पर कम नहीं हुए हैं प्रश्न
दुनिया में आदान-प्रदान बढ़ा है 
पर कम नहीं हुए हैं युद्ध।
युद्ध के सारे हथियार बदले हैं
पर एक चीज़ बिल्कुल नहीं बदली
कि युद्ध में अब भी मरता है आदमी।

मारने की दर बढ़ी है दुनिया में 
पर
कम नहीं हुआ है किसी पर मरने का मूल्य।
-दिनेश कुशवाह

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

इक बार कहो तुम मेरी हो -इब्ने इंशा

गूगल से साभार 

हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो।

-इब्ने इंशा

सोमवार, 14 जनवरी 2019

बच्चा - 1 -उदय भान मिश्र

गूगल से साभार 

बात बात पर
हंसता है बच्चा!

बात बात पर
बिदकता है बच्चा!

बच्चे जब हंसता है
धरती की कोख
जुड़ा जाती है!

बच्चा जब रोता है
आकाश की आंखें
डबडबा जाती हैं।

-उदय भान मिश्र

रविवार, 13 जनवरी 2019

सात सुरों में पुकारता है प्यार -गोरख पाण्डेय

गूगल से साभार 

रामजी राय से एक लोकगीत सुनकर

माँ, मैं जोगी के साथ जाऊँगी

जोगी शिरीष तले
मुझे मिला

सिर्फ एक बाँसुरी थी उसके हाथ में
आँखों में आकाश का सपना
पैरों में धूल और घाव

गाँव-गाँव वन-वन
भटकता है जोगी
जैसे ढूँढ रहा हो खोया हुआ प्यार
भूली-बिसरी सुधियों और
नामों को बाँसुरी पर टेरता

जोगी देखते ही भा गया मुझे
माँ, मैं जोगी के साथ जाऊँगी

नहीं उसका कोई ठौर ठिकाना
नहीं ज़ात-पाँत
दर्द का एक राग
गाँवों और जंगलों को
गुंजाता भटकता है जोगी
कौन-सा दर्द है उसे माँ
क्या धरती पर उसे
कभी प्यार नहीं मिला?
माँ, मैं जोगी के साथ जाऊँगी

ससुराल वाले आएँगे
लिए डोली-कहार बाजा-गाजा
बेशक़ीमती कपड़ों में भरे
दूल्हा राजा
हाथी-घोड़ा शान-शौकत
तुम संकोच मत करना, माँ
अगर वे गुस्सा हों मुझे न पाकर

तुमने बहुत सहा है
तुमने जाना है किस तरह
स्त्री का कलेजा पत्थर हो जाता है
स्त्री पत्थर हो जाती है
महल अटारी में सजाने के लायक

मैं एक हाड़-माँस क़ी स्त्री
नहीं हो पाऊँगी पत्थर
न ही माल-असबाब
तुम डोली सजा देना
उसमें काठ की पुतली रख देना
उसे चूनर भी ओढ़ा देना
और उनसे कहना-
लो, यह रही तुम्हारी दुलहन

मैं तो जोगी के साथ जाऊँगी, माँ
सुनो, वह फिर से बाँसुरी
बजा रहा है

सात सुरों में पुकार रहा है प्यार

भला मैं कैसे
मना कर सकती हूँ उसे ?
-गोरख पाण्डेय