सोमवार, 24 दिसंबर 2018

मैं कब कहता हूँ - बशीर बद्र

गूगल से साभार 
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है


खुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है


मैं हर लम्हे मे सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है


मेरा दिल बारिशों मे फूल जैसा
ये बच्चा रात मे रोता बहुत है


वो अब लाखों दिलो से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है
- बशीर बद्र 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा ग़ज़ल
    आभार पढ़वाने के लिए..
    सादर..

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  2. यही ग़ज़ल आज मेरी धरोहर में भी..
    साभार.
    सादर..

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    उत्तर
    1. जी आभार सह्दय...
      'मेरी धरोहर'में 'मै कब कहता हूँ'...बशीर बद्र जी की गज़ल संकलित करने के लिए
      सादर..

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